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प्रार्थना का प्रभाव

यह घटना बरोडा के एक वरिष्ठ डॉक्टर की आपबीती है जिसने उनका जीवन बदल दिया। वह heart specialist हैं।उनके अनुसार:

एक दिन मेरे पास एक दंपति अपनी छः साल की बच्ची को लेकर आए।निरिक्षण के बाद पता चला कि उसके heart में पूर्ण रूप से clogging हो चुकी है।मैंने अपनी पूरीteam से discuss करने के बाद उस दंपति से कहा कि 30% chance है survival का open heart surgeryके बाद नहीं तो बच्ची के पास तीन महीने का समय है।माता पिता भावुक हो कर बोले कि वह surgeryका chance लेगें।

सर्जरी के पांच दिन पहले बच्ची को admit कर लिया गया।उसकी माँ को प्रार्थना में अटूट विश्वास था।वह सुबह शाम बच्ची को यही कहती कि God lives in ur heart..वह तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे।

सर्जरी के दिन मैंने उस बच्ची से कहा; don’t worry u will be alright after surgery..उसने कहा डाक्टर I am not worried coz God is in my heart पर surgery में आप जब मेरा heart open करोगे तो देखकर बताना God कैसे दिखते हैं।

ऑपरेशन के दौरान पता चल गया कि कुछ नहीं हो सकता।

बच्ची को बचाना असंभव है।heart में blood का एक drop भी नहीं आ रहा था।निराश होकर मैंने अपनी team से वापिस stich करने का आदेश दिया।तभी मुझे बच्ची के आखिरी बात याद आई और मैं अपने रक्त भरे हाथों को जोड कर प्रार्थना करने लगा कि हे इश्वर! मेरा सारा अनुभव तो इस बच्ची को बचाने में असमर्थ है पर यदि आप इसके हृदय में विराजमान हो तो आप ही कुछ कीजिए।

यह मेरी पहली अश्रु पूर्ण प्रार्थना थी।इसी बीच मेरे junior doctor ने मुझे कोहनी मारी। मैं miracles में विश्वास नहीं करता था पर मैं स्तब्ध हो गया यह देखकर कि heart में blood supply शुरू हो गई।मेरे 60yrs के career में ऐसा पहली बार हुआ था।

आपरेशन सफल तो हो गया पर मेरा जीवन बदल गया।मैंने बच्ची से कहा don’t make effort to see God..He can’t be seen, He can be experienced…

इस घटना के बाद मैंने अपने आपरेशन थियेटर में प्रार्थना का नियम निभाना शुरू दिया।मैं यह अनुरोध करता हूं कि सभी को अपने बच्चों में प्रार्थना का संस्कार डालना ही चाहिए।


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